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अप्रैल, सन् 1929 को असेम्बली में बम क्रांतिकारी के बाद भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त द्वारा बाँटे गए।

अप्रैल, सन् 1929 को असेम्बली में बम क्रांतिकारी के बाद भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त द्वारा बाँटे गए।




'हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातांत्रिक सेना' सूचना

"बहरों को सुनने के लिए बहुत ऊँची आवाज़ की ज़रूरत होती है," प्रसिद्ध फ्रांसीसी वैज्ञानिक शहीद वलियों के यह अमर शब्द हमारे काम के औचित्य के प्रमाण हैं।

पिछले दस वर्षों में ब्रिटिश सरकार ने शासन-सुधार के नाम पर इस देश का जो अपमान किया है, उसकी कहानी दोहराने की आवश्यकता नहीं है और न ही हिंदुस्तानी पार्लियामेंट पुकारी जानेवाली इस सभा ने भारतीय राष्ट्र के सिर पर पत्थर फेंककर अपना जो अपमान किया है, उसका उदाहरणों को याद दिलाने की आवश्यकता है। यह सब सर्वविदित और स्पष्ट है। 

आज फिर जब लोग 'साइमन कमीशन' से कुछ सुधारों के संकेत की आशा में शामिल हैं और इन सिद्धांतों के लोभ में झगड़े हो रहे हैं, तो विदेशी सरकार 'सार्वजनिक सुरक्षा  विधेयक (पब्लिक बिल) और 'औद्योगिक विवाद  विधेयक' ( ट्रेड्स डिस्प्यूट्स बिल) के रूप में अपने दमन को और भी  कड़ा करने का यत्न कर रही है। 

इसके साथ ही आनेवाले  अधिवेशन में 'अखबारों द्वारा राजद्रोह निषेध का कानून' (प्रेस सैडिशन एक्ट) जनता पर  कसने की भी   धमकी दी जा रही है। सार्वजनिक काम करने वाले मजदूर नेताओं की अंधाधुंध गिरफ़्तारियाँ यह स्पष्ट कर देती हैं कि सरकार किस  रवैए पर चल रही है।



राष्ट्रीय दमन और उत्पीड़न की इस चरम स्थिति में अपने उत्तरदायित्व की  गंभीरता को महसूस करते हुए 'हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातांत्रिक संघ' ने अपनी सेना को यह कदम उठाने का मौका दिया है। इस कार्य का प्रस्ताव है कि किस कानून का यह  अपमानजनक प्रहसन समाप्त कर दिया जाए। विदेशी  शोषक  नौकरशाही जो चाहे करे लेकिन उसकी वैधानिकता की नकाब  फाड़ देना आवश्यक है।

जनता के प्रतिनिधियों से हमारा अनुरोध है कि वे इस संसद के  पाखंड को छोड़कर अपने-अपने   क्षेत्रों में वापस लौट जाएं और जनता  को विदेशी उत्पीड़न और शोषण के  विरूद्ध  क्रांति के लिए तैयार  करें ।    

          
हम विदेशी सरकार को यह बताना चाहते हैं कि हम 'सार्वजनिक सुरक्षा' और 'औद्योगिक विवाद' के दमनकारी कानून और लाला लाजपत राय की हत्या के विरोध में देश की जनता की ओर से यह कदम उठा रहे हैं।

हम मनुष्य के जीवन को पवित्र तत्व मानते हैं। हम ऐसे भविष्य में विश्वास रखते हैं जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को पूर्ण शांति और स्वतंत्रता का अवसर मिल सके। हम इंसान का खून  बहाने  की अपनी विवशता पर दुखी हैं, परंतु  क्रांति में कुछ-न-कुछ रक्तपात आवश्यक है।

इंकलाब जिंदाबाद !

ह. बलराज
कमाण्डर इन चीफ

लिखित तिथि : अप्रैल, 1929
लेखक : भगत सिंह
शीर्षक : असेंबली हॉल में फेंका गया पर्चा ( असेंबली हॉल में फेंक दिया गया पर्चा )
पहली बार प्रकाशित : 8 अप्रैल, 1929 को भगत सिंह और बीके दत्ता द्वारा सेंट्रल असेंबली, नई दिल्ली में फेंका गया पर्चा 



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