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Japji Sahib in Hindi | जपजी साहिब पाठ हिंदी में

 



Japji Sahib Path

ੴ सतनाम करता पुरख निरभउ निरवैर अकाल मूरत अजूनी सैभं गुरप्रसाद 

॥ जप ॥

आद सच जुगाद सच ॥
है वि सच नानक होसी वि सच ॥१॥


सोचै सोचि न होई जे सोची लख वार ॥
चुपै चुप न होई जे लाइ रहा लिव तार ॥
भुखिआ भुख न उतरी जे बंना परीआ भार ॥
सहस सिआणपा लख होहि त इक न चलै नाल ॥
किव सचिआरा होईऐ किव कूड़ै तुटै पाल ॥
हुकमि रजाई चलणा नानक लिखिआ नाल ॥१॥


हुकमी होवन आकार हुकम न कहिआ जाई ॥
हुकमी होवन जीअ हुकम मिलै वडिआई ॥
हुकमी उतम नीच हुकमि लिखि दुख सुख पाईअहि ॥
इकना हुकमी बखसीस इकि हुकमी सदा भवाईअहि ॥
हुकमै अंदरि सभु को बाहरि हुकम न कोइ ॥
नानक हुकमै जे बुझै त हउमै कहै न कोइ ॥२॥


गावै को ताण होवै किसै ताण ॥
गावै को दाति जाणै नीसाण ॥
गावै को गुण वडिआईआ चार ॥
गावै को विदिआ विखम वीचार ॥
गावै को साजि करे तनु खेह ॥
गावै को जीअ लै फिरि देह ॥
गावै को जापै दिसै दूर ॥
गावै को वेखै हादरा हदूरि ॥
कथना कथी न आवै तोटि ॥
कथि कथि कथी कोटी कोटि कोटि ॥
देदा दे लैदे थकि पाहि ॥
जुगा जुगंतरि खाही खाहि ॥
हुकमी हुकम चलाए राहु ॥
नानक विगसै वेपरवाह ॥३॥


साचा साहिब साच नाइ भाखिआ भाउ अपार ॥
आखहि मंगहि देहि देहि दाति करे दातार ॥
फेरि कि अगै रखीऐ जित दिसै दरबार ॥
मुहौ कि बोलण बोलीऐ जित सुणि धरे पिआर ॥
अम्रित वेला सच नाउ वडिआई वीचार ॥
करमी आवै कपड़ा नदरी मोख दुआर ॥
नानक एवै जाणीऐ सभ आपे सचिआर ॥४॥


थापिआ न जाइ कीता न होइ ॥
आपे आप निरंजनु सोइ ॥
जिन सेविआ तिन पाइआ मान ॥
नानक गावीऐ गुण निधान ॥
गावीऐ सुणीऐ मनि रखीऐ भाउ ॥
दुख परहरि सुख घरि लै जाइ ॥
गुरमुख नादं गुरमुख वेदं गुरमुख रहिआ समाई ॥
गुरु ईसर गुरु गोरख बरमा गुरु पारबती माई ॥
जे हउ जाणा आखा नाही कहणा कथन न जाई ॥
गुरा इक देहि बुझाई ॥

सभना जीआ का इक दाता सो मै विसरि न जाई ॥५॥


तीरथ नावा जे तिस भावा विण भाणे कि नाइ करी ॥
जेती सिरठि उपाई वेखा विण करमा कि मिलै लई ॥
मति विचि रतन जवाहर माणिक जे इक गुर की सिख सुणी ॥
गुरा इक देहि बुझाई ॥

सभना जीआ का इक दाता सो मै विसरि न जाई ॥६॥


जे जुग चारे आरजा होर दसणी होइ ॥
नवा खंडा विचि जाणीऐ नालि चलै सभ कोइ ॥
चंगा नाउ रखाइ कै जस कीरति जगि लेइ ॥
जे तिस नदरि न आवई त वात न पुछै के ॥
कीटा अंदरि कीट करि दोसी दोस धरे ॥
नानक निरगुण गुण करे गुणवंतिआ गुण दे ॥

तेहा कोइ न सुझई जि तिस गुण कोइ करे ॥७॥


सुणिऐ सिध पीर सुरि नाथ ॥
सुणिऐ धरति धवल आकास ॥
सुणिऐ दीप लोअ पाताल ॥
सुणिऐ पोहि न सकै काल ॥
नानक भगता सदा विगास ॥
सुणिऐ दूख पाप का नास ॥८॥


सुणिऐ ईसरु बरमा इंदु ॥
सुणिऐ मुखि सालाहण मंदु ॥
सुणिऐ जोग जगत तनि भेद ॥
सुणिऐ सासत सिम्रिति वेद ॥
नानक भगता सदा विगास ॥
सुणिऐ दूख पाप का नास ॥९॥


सुणिऐ सत संतोख गिआन ॥
सुणिऐ अठसठि का इसनान ॥
सुणिऐ पड़ि पड़ि पावहि मान ॥
सुणिऐ लागै सहजि धिआन ॥
नानक भगता सदा विगास ॥

सुणिऐ दूख पाप का नास ॥१०॥


सुणिऐ सरा गुणा के गाह ॥
सुणिऐ सेख पीर पातिसाह ॥
सुणिऐ अंधे पावहि राहु ॥
सुणिऐ हाथ होवै असगाह ॥
नानक भगता सदा विगास ॥
सुणिऐ दूख पाप का नास ॥११॥


मंन की गति कही न जाइ ॥
जे को कहै पिछै पछताइ ॥
कागद कलम न लिखणहार ॥
मंन का बहि करनि वीचार ॥
ऐसा नाम निरंजन होइ ॥
जे को मंन जाणै मन कोइ ॥१२॥


मंन सुरति होवै मनि बुधि ॥
मंन सगल भवण की सुधि ॥
मंन मुहि चोटा ना खाइ ॥
मंन जम कै साथि न जाइ ॥
ऐसा नाम निरंजन होइ ॥

जे को मंन जाणै मन कोइ ॥१३॥


मंन मारगि ठाक न पाइ ॥
मंन पति सिउ परगट जाइ ॥
मंन मग न चलै पंथ ॥
मंन धरम सेती सनबंध ॥
ऐसा नाम निरंजन होइ ॥
जे को मंनि जाणै मनि कोइ ॥१४॥


मंन पावहि मोख दुआर ॥
मंन परवारै साधार ॥
मंन तरै तारे गुरु सिख ॥
मंन नानक भवहि न भिख ॥
ऐसा नाम निरंजन होइ ॥
जे को मंनि जाणै मनि कोइ ॥१५॥


पंच परवाण पंच परधान ॥
पंचे पावहि दरगहि मान ॥
पंचे सोहहि दरि राजान ॥
पंचा का गुरु एकु धिआन ॥
जे को कहै करै वीचार ॥
करते कै करणै नाही सुमार ॥
धौल धरम दइआ का पूत ॥
संतोख थापि रखिआ जिनि सति ॥
जे को बुझै होवै सचिआर ॥
धवलै उपरि केता भार ॥
धरती होर परै होर होर ॥
तिस ते भार तलै कवण जोर ॥
जीअ जाति रंगा के नाव ॥
सभना लिखिआ वुड़ी कलाम ॥
एह लेखा लिखि जाणै कोइ ॥
लेखा लिखिआ केता होइ ॥
केता ताण सुआलिह रूप॥
केती दाति जाणै कौण कूत॥
कीता पसाउ एको कवाउ ॥
तिस ते होए लख दरीआउ ॥
कुदरत कवण कहा वीचार ॥
वारिआ न जावा एक वार ॥
जो तुध भावै साई भली कार ॥
तू सदा सलामत निरंकार ॥१६॥


असंख जप असंख भाउ ॥
असंख पूजा असंख तप ताउ ॥
असंख गरंथ मुखि वेद पाठ ॥
असंख जोग मनि रहहि उदास ॥
असंख भगत गुण गिआन वीचार ॥
असंख सती असंख दातार ॥
असंख सूर मुह भख सार ॥
असंख मोनि लिव लाइ तार ॥
कुदरत कवण कहा वीचार ॥
वारिआ न जावा एक वार ॥
जो तुध भावै साई भलीकार ॥
तू सदा सलामत निरंकार ॥१७॥


असंख मूरख अंध घोर ॥
असंख चोर हरामखोर ॥
असंख अमर करि जाहि जोर ॥
असंख गलवढ हतिआ कमाहि ॥
असंख पापी पाप करि जाहि ॥
असंख कूड़िआर कूड़े फिराहि ॥
असंख मलेछ मलभखि खाहि ॥
असंख निंदक सिरि करहि भार ॥
नानक नीच कहै वीचार ॥
वारिआ न जावा एक वार ॥
जो तुध भावै साई भलीकार ॥
तू सदा सलामत निरंकार ॥१८॥


असंख नाव असंख थाव ॥
अगम अगम असंख लोअ ॥
असंख कहहि सिरि भारु होइ ॥
अखरी नाम अखरी सालाह ॥
अखरी गिआन गीत गुण गाह ॥
अखरी लिखण बोलण बाणि ॥
अखरा सिरि संजोग वखाणि ॥
जिनि एहि लिखे तिस सिरि नाहि ॥
जिव फुरमाए तिव तिव पाहि ॥
जेता कीता तेता नाउ ॥
विण नावै नाही को थाउ ॥
कुदरत कवण कहा वीचार ॥
वारिआ न जावा एक वार ॥
जो तुध भावै साई भलीकार ॥
तू सदा सलामत निरंकार ॥१९॥


भरीऐ हथु पैरु तनु देह ॥
पाणी धोतै उतरस खेह ॥
मूत पलीती कपड़ होइ ॥
दे साबूण लईऐ ओह धोइ ॥
भरीऐ मति पापा कै संगि ॥
ओह धोपै नावै कै रंगि ॥
पुंनी पापी आखण नाहि ॥
करि करि करणा लिखि लै जाहु ॥
आपे बीजि आपे ही खाहु ॥
नानक हुकमी आवह जाहु ॥२०॥


तीरथ तप दइआ दत दान ॥
जे को पावै तिल का मान ॥
सुणिआ मंनिआ मनि कीता भाउ ॥
अंतरगति तीरथि मलि नाउ ॥
सभिगुण तेरे मै नाही कोइ ॥
विणगुण कीते भगति न होइ ॥
सुसति आथि बाणी बरमाउ ॥
सति सुहाण सदा मनि चाउ ॥
कवण सु वेला वखत कवण  कवण थिति कवणवार ॥
कवणि सि रुती माह कवण जित होआ आकार ॥
वेल न पाईआ पंडती जिहोवै लेखपुराण ॥
वखत न पाइओ कादीआ जि लिखन लेखकुराण ॥
थिति वार ना जोगी जाणै रुति माह ना कोई ॥

जा करता सिरठी कउ साजे आपे जाणै सोई ॥
किव करि आखा किव सालाही किउ वरनी किव जाणा ॥
नानक आखण सभ को आखै इक दू इक सिआणा ॥
वडा साहिब वडी नाई कीता जा का होवै ॥
नानक जे को आपौ जाणै अगै गइआ न सोहै ॥२१॥


पाताला पाताल लख आगासा आगास ॥
ओड़क ओड़क भालि थके वेद कहनि इक वात ॥
सहस अठारह कहनि कतेबा असुल इक धात ॥
लेखा होइ त लिखीऐ लेखै होइ विणास ॥
नानक वडा आखीऐ आपे जाणै आप ॥२२॥


साला ही साला हि एती सुरति न पाईआ ॥
नदीआ अतै वाह पवहि समुंदि न जाणीअहि ॥
समुंद साह सुलतान गिरहा सेती माल धन ॥
कीड़ी तुल न होवनी जे तिस मनह न वीसरहि ॥२३॥


अंत न सिफती कहणि न अंत ॥
अंत न करणै देणि न अंत ॥
अंत न वेखणि सुणणि न अंत ॥
अंत न जापै किआ मनि मंत ॥
अंत न जापै कीता आकार ॥
अंत न जापै पारावार ॥
अंत कारणि केते बिललाहि ॥
ता के अंत न पाए जाहि ॥
एह अंत न जाणै कोइ ॥
बहुता कहीऐ बहुता होइ ॥
वडा साहिब ऊचा थाउ ॥
ऊचे उपरि ऊचा नाउ ॥
एवड ऊचा होवै कोइ ॥
तिस ऊचे कउ जाणै सोइ ॥
जेवड आपि जाणै आपि आपि ॥
नानक नदरी करमी दाति ॥२४॥


बहुता करम लिखिआ ना जाइ ॥
वडा दाता तिल न तमाइ ॥
केते मंगहि जोध अपार ॥
केतिआ गणत नही वीचार ॥
केते खपि तुटहि वेकार ॥
केते लै लै मुकर पाहि ॥
केते मूरख खाही खाहि ॥
केतिआ दूख भूख सद मार ॥
एहि भि दाति तेरी दातार ॥
बंदि खलासी भाणै होइ ॥
होर आखि न सकै कोइ ॥
जे को खाइक आखणि पाइ ॥
ओहु जाणै जेतीआ मुहि खाइ ॥
आपे जाणै आपे देइ ॥
आखहि सि भि केई केइ ॥
जिस नो बखसे सिफति सालाह ॥
नानक पातिसाही पातिसाह ॥२५॥


अमुल गुण अमुल वापार 
अमुल वापारी ए      अमुल भंडार ॥
अमुल आवहि अमुल लै जाहि ॥
अमुल भाइ अमुला समाहि ॥
अमुल धरम अमुल दीबाण ॥
अमुल तुल अमुल परवाण ॥
अमुल बखसीस अमुलु नीसाण ॥
अमुल करम अमुल फ    रमाण ॥
अमुलो अमुल आखिआ न जाइ ॥
आखि आखि रहे लिव लाइ ॥
आखहि वेद पाठ पुराण ॥
आखहि पड़े करहि वखिआण ॥
आखहि बरमे आखहि इंद ॥
आखहि गोपी तै गोविंद ॥
आखहि ईसर आखहि सिध ॥
आखहि केते कीते बुध ॥
आखहि दानव आखहि देव ॥
आखहि सुरि नर मुनि जन सेव ॥
केते आखहि आखणि पाहि ॥
केते कहि कहि उठि उठि जाहि ॥
एते कीते होरि करेहि ॥
ता आखि न सकहि केई केइ ॥
जेवड भावै तेवड होइ ॥
नानक जाणै साचा सोइ ॥
जे को आखै बोलविगाड़ ॥
ता लिखीऐ सिरि गावार गावार ॥२६॥


सो दर केहा सो घर केहा जित बहि सरब समाले ॥
वाजे नाद अनेक असंखा केते वावणहारे ॥
केते राग परी सिउ कहीअनि केते गावणहारे ॥
गावहि तुहनो पउण पाणी बैसंतरु गावै राजा धरम दुआरे ॥
गावहि चित गुपत लिखि जाणहि लिखि लिखि धरम वीचारे ॥
गावहि ईसर बरमा देवी सोहनि सदा सवारे ॥
गावहि इंद इदासणि बैठे देवतिआ दरि नाले ॥
गावहि सिध समाधी अंदरि गावनि साध विचारे ॥
गावनि जती सती संतोखी गावहि वीर करारे ॥
गावनि पंडित पड़नि रखीसर जुगजुग वेदा नाले ॥
गावहि मोहणीआ मनमोहनि सुरगा मछ पइआले ॥
गावनि रतन उपाए तेरे अठसठि तीरथ नाले ॥
गावहि जोध महाबल सूरा गावहि खाणी चारे ॥
गावहि खंड मंडल वरभंडा करि करि रखे धारे ॥
सेई तुधनो गावहि जो तुध भावनि रते तेरे भगत रसाले ॥
होरि केते गावनि से मै चिति न आवनि नानकु किआ वीचारे ॥
सोई सोई सदा सचु साहिबु साचा साची नाई ॥
है भी होसी जाइ न जासी रचना जिनि रचाई ॥
रंगी रंगी भाती करि करि जिनसी माइआ जिनि उपाई ॥
करि करि वेखै कीता आपणा जिव तिस दी वडिआई ॥
जो तिसु भावै सोई करसी हुकम न करणा जाई ॥
सो पातिसाह साहा पातिसाहिब नानक रहण रजाई ॥२७॥


मुंदा संतोखु सरमु पतु झोली धिआन की करहि बिभूति ॥
खिंथा काल कुआरी काइआ जुगति डंडा परतीत ॥
आई पंथी सगल जमाती मनि जीतै जग जीत ॥
आदेश तिसै आदेश ॥
आदि अनील अनादि अनाहति जुगजुग एको वेस ॥२८॥


भगति गिआन दइआ भंडारणि घटि घटि वाजहि नाद ॥
आपि नाथ नाथी सभ जा की रिधि सिधि अवरा साद ॥
संजोग विजोग दुइ कार चलावहि लेखे आवहि भाग ॥
आदेश तिसै आदेश ॥
आदि अनील अनादि अनाहति जुगजुगु एको वेस ॥२९॥


एका माई जुगति विआई तिनि चेले परवाण ॥
इक संसारी इक भंडारी इक लाए दीबाण ॥
जिव तिस भावै तिवै चलावै जिव होवै फरमाण ॥
ओह वेखै ओना नदरि न आवै बहता एह विडाण ॥
आदेश तिसै आदेश॥
आदि अनील अनादि अनाहति जुगजुग एको वेस ॥३०॥


आसण लोइ लोइ भंडार ॥
जो किछ पाइआ स एका वार ॥
करि करि वेखै सिरजणहार ॥
नानक सचे की साची कार ॥
आदेश तिसै आदेश॥
आदि अनील अनादि अनाहति जुगजुग एको वेस ॥३१॥


इक दू जीभौ लख होहि लख होवहि लख वीस ॥
लख लख गेड़ा आखीअहि एक नाम जगदीस ॥
एतु राहि पति पवड़ीआ चड़ीऐ होइ इकीस ॥
सुणि गला आकास की कीटा आई रीस ॥
नानक नदरी पाईऐ कूड़ीकूड़ै ठीस ॥३२॥


आखणि जोर चुपै नह जोर ॥
जोर न मंगणि देणि न जोर ॥
जोर न जीवणि मरणि नह जोर ॥
जोर न राजि मालि मनि सोर ॥
जोर न सुरती गिआनि वीचारि ॥
जोर न जुगती छुटै संसार ॥
जिस हथि जोर करि वेखै सोइ ॥
नानक उतम नीच न कोइ ॥३३॥


राती रुती थिती वार ॥
पवण पाणी अगनी पाताल ॥
तिस विचि धरती थापि रखी धरम साल ॥
तिस विचि जीअ जुगति के रंग ॥
तिन के नाम अनेक अनंत ॥
करमी करमी होइ वीचार ॥
सचा आपि सचा दरबार ॥
तिथै सोहनि पंच परवाण ॥
नदरी करमि पवै नीसाण ॥
कच पकाई ओथै पाइ ॥
नानक गइआ जापै जाइ ॥३४॥


धरम खंड का एहो धरम ॥
गिआन खंड का आखह करम ॥
केते पवण पाणी वैसंतर केते कान महेस ॥
केते बरमे घाड़ति घड़ीअहि रूप रंग के वेस ॥
केतीआ करम भूमी मेर केते केते धू उपदेस ॥
केते इंद चंद सूर केते केते मंडल देस ॥
केते सिध बुध नाथ केते केते देवी वेस ॥
केते देव दानव मुनि केते केते रतन समुंद ॥
केतीआ खाणी केतीआ बाणी केते पात नरिंद ॥
केतीआ सुरती सेवक केते नानक अंत न अंत ॥३५॥


गिआन खंड महि गिआन परचंड ॥
तिथै नाद बिनोद कोड अनंद ॥
सरम खंड की बाणी रूप ॥
तिथै घाड़ति घड़ीऐ बहुत अनूपु ॥
ता कीआ गला कथीआ ना जाहि ॥
जे को कहै पिछै पछुताइ ॥
तिथै घड़ीऐ सुरति मति मनि बुधि ॥
तिथै घड़ीऐ सुरा सिधा की सुधि ॥३६॥


करम खंड की बाणी जोर ॥
तिथै होर न कोई होर ॥
तिथै जोध महाबल सूर ॥
तिन महि राम रहिआ भरपूर ॥
तिथै सीतो सीता महिमा माहि ॥
ता के रूप न कथने जाहि ॥
ना ओहि मरहि न ठागे जाहि ॥
जिन कै रामु वसै मन माहि ॥
तिथै भगत वसहि के लोअ ॥
करहि अनंदु सचा मनि सोइ ॥
सच खंडि वसै निरंकारु ॥
करि करि वेखै नदरि निहाल ॥
तिथै खंड मंडल वरभंड ॥
जे को कथै त अंत न अंत ॥
तिथै लोअ लोअ आकार ॥
जिव जिव हुकम तिवै तिव कार ॥
वेखै विगसै करि वीचार ॥
नानक कथना करड़ा सार ॥३७॥


जत पाहारा धीरज सुनिआर ॥
अहरणि मति वेद हथीआर ॥
भउ खला अगनि तप ताउ ॥
भांडा भाउ अम्रितु तित ढालि ॥
घड़ीऐ सबदु सची टकसाल ॥
जिन कउ नदरि करम तिन कार ॥
नानक नदरी नदरि निहाल ॥३८॥


सलोक ॥


पवण गुरू पाणी पिता माता धरति महत ॥
दिवस राति दुइ दाई दाइआ खेलै सगल जगत ॥
चंगिआईआ बुरिआईआ वाचै धरम हदूरि ॥
करमी आपो आपणी के नेड़ै के दूर ॥
जिन नाम धिआइआ गए मसकति घाल ॥
नानक ते मुख उजले केती छुटी नाल ॥१॥




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